नई दिल्लीः वित्तीय वर्ष 2018-19 के बजट में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने टैक्स पेयर्स को राहत देने और उससे यह सुविधा अप्रत्यक्ष तरीके से छीन लेने के लिए बेहतरीन ‘ट्रिक’ आजमाया है. देश के करोड़ों टैक्स पेयर्स को राहत देने के लिए उन्होंने 40 हजार रुपए का स्टैंडर्ड डिडक्शन स्कीम लांच किया. साथ ही कहा कि इससे सरकार को 8 हजार करोड़ का नुकसान होगा. इसके अगले ही क्षण में उन्होंने बजट भाषण में ‘सेस’ बढ़ाने का एलान कर दिया.
इससे सरकार के खजाने में 11 हजार करोड़ रुपए आएंगे, यह भी कहना वित्त मंत्री नहीं भूले. यानी एक तरफ तो वित्त मंत्री ने टैक्स पेयर्स को स्टैंडर्ड डिडक्शन का तोहफा देते हुए अपनी पीठ थपथपाई, वहीं दूसरी ओर सेस बढ़ाकर अपने सरकार की झोली भी भर ली. दरअसल, सेस की दर पहले 3 प्रतिशत थी. एक प्रतिशत की बढ़ोतरी से सरकार के खजाने में अच्छी-खासी रकम आएगी. ऐसे में जबकि अगले साल देश में आम चुनाव होने हैं, देश के करदाता सरकार से टैक्स में राहत की उम्मीद लगाए बैठे थे, उन्हें वित्त मंत्री के इस कदम से निराशा ही हाथ लगी है.
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क्या है स्टैंडर्ड डिडक्शन
वित्त मंत्री ने 2018-19 के बजट में नौकरीपेशा और पेंशनभोगियों को 40,000 रुपए की मानक कटौती यानी स्टैंडर्ड डिडक्शन देने की घोषणा की है. विशेषज्ञों के मुताबिक इससे लोगों को मामूली राहत ही मिलेगी. मानक कटौती की यह व्यवस्था वर्ष 2006-07 से बंद कर दी गई थी.
विशेषज्ञों के अनुसार इस छूट से वास्तव में नौकरीपेशा लोगों की टैक्सेबल आमदनी में 5,800 रुपए का ही लाभ मिलने का अनुमान है. उन्हें 19,200 रुपए सालाना का टैक्स मुक्त ट्रांसपोर्ट अलाउंस और 15 हजार रुपए का मेडिकल रिइम्बर्समेंट दिया जाता है. यह राशि 34,200 रुपए होती है, इसके स्थान पर अब उन्हें 40,000 रुपए का स्टैंडर्ड डिडक्शन लाभ मिलेगा. सरकार के इस प्रस्ताव से देश के करीब 2.5 करोड़ वेतनभोगियों और पेंशनभोगियों को लाभ मिलेगा वहीं, खजाने पर 8000 करोड़ रुपए का बोझ बढ़ जाएगा.